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रत्न धारण करते समय इस मंत्र से करें प्राण प्रतिष्ठा, जीवन में मिलेगी अपार सफलता

ग्रहों से सीधा संबंध होने के कारण रत्नों का हमारे जीवन में सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, इसलिए ज्योतिषियों की सलाह लेने के बाद ही किसी रत्न को धारण करना चाहिए. आइए जानते हैं रत्न से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें.

रत्न की प्राण प्रतिष्ठा ज़रूरी
कुंडली में ग्रह दोष को शांत करने के लिए रत्न पहना जाता है, परंतु रत्न धारण करने के कुछ नियम कायदे होते हैं. रत्न को साधारण तरीके से पहनने से इसका लाभ नहीं मिला. ज्योतिषियों के अनुसार, रत्न धारण करते समय उसकी प्राण प्रतिष्ठा करना ज़रूरी होता है. उसके बिना रत्न को निरर्थक माना जाता है, इसलिए रत्न धारण करने से पहले ज्योतिषियों की सलाह लेनी चाहिए.

इन बातों का रखें ध्यान
ज्योतिष के अनुसार, किसी ग्रह की दशा को सुधारने के लिए रत्न धारण किया जाता है. ऐसे में रत्न धारण शुभ मुहूर्त में ही करना चाहिए. रत्न धारण करने से पहले सर्वप्रथम स्नान कर साफ कपड़े पहनने चाहिए. इसके बाद साफ स्थान पर पूर्व की ओर मुख कर बैठें. अंगूठी को कच्चे दूध, मिश्री, शुद्ध देसी घी, गंगाजल, मधु और फूल के घोल में डालकर स्वच्छ करना चाहिए. दाहिने हाथ में जल, कुमकुम, चावल, दूर्वा और दक्षिणा लेकर संकल्प लेते हुए मंत्रों के साथ रत्न धारण करना चाहिए.

इन मंत्रों का करें जाप
‘ततो जलेन प्रक्षालय प्राण-प्रतिष्ठा कुर्यात।। प्रतिमाया: कपलौ दक्षिण पाणिना स्पष्ट्वा मंत्रा: पठनीया:।। अस्य श्री प्राणप्रतिष्ठा मंत्रस्य विष्णुरूदौ ऋषी ऋग्यजु: सामान्छिदांसि प्राणख्या देवता।। ॐ आं बीजं हीं शक्ति: क्रां कीलंय यं रं लं वं शं षं सं हं हं स: एत: शक्तय: मूर्ति प्रतिष्ठापन विनियोग:।। ॐ आं ह्मीं कों यं रं लं वं शं षं हं स: देवस्य प्राणा: इह पुरूच्चार्य देवस्य सर्वेनिन्द्रयाणी इह:। पुनरुच्चार्य देचस्य त्वक्पाणि पाद पस्थादीनि इह:। पुनरुच्चार्य देवस्य वाड्. मनश्चृतक्षु: श्रोत्र घ्राणानि इह्मगत्य सुखेन चिरं तिष्ठतु स्वाहा।। प्राणप्रतिष्ठाा विधाय ध्यायेत्।। ववं प्राणप्रतिष्ठा कुत्वा षोडशोपचारै: पूज्येत्।।’

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